शनिवार की सर्द रात बॉलीवुड सिंगर कविता सेठ की रुहानी आवाज गर्माहट घोल रही थी। जब उन्होंने अमीर खुसरो के कलाम ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के…’ को अपनी सूफियाना आवाज दी, दिल-दिमाग इस कलाम में खो सा गया। लोग अपनी थकान-तनाव को भूल गए।
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‘मोरा पिया मो से बोलत न ही…’ सुन रोम-रोम ने कहा- वाह, दर्शकों की फरमाइश पर ‘गूंजा सा है कोई इक तारा…’ गाया। इस गाने की लोग लगातार उनसे फरमाइश कर चुके थे। बेहतरीन गीत-संगीत से सजी इस महफिल को सूफी सिंगर ने नीरजा फिल्म के गाने ‘कहता ये पल, खुद से निकल, जीते हैं चल, जीते हैं चल…’ से आगे बढ़ाया।
मंच से शेर-ओ-शायरी के जरिए भी वे समां बांधे रहीं, उन्होंने पढ़ा-
प्रेरणा उत्सव का दूसरा दिन मौका था दैनिक भास्कर के प्रेरणा स्रोत रमेशचंद्र अगवाल की स्मृति में प्रेरणा उत्सव के दूसरे दिन का, रवींद्र भवन सभागार में कविता के साथ लोगों ने भी गजलें गुनगुनाईं। दैनिक भास्कर समूह के डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने कहा-
प्रेरणा उत्सव मनाने के पीछे हमारा एक ही मूल मंत्र है। हमारे पिता रमेशचंद्र अग्रवाल जी कहते थे कि हमको अपने आपको समाज से जोड़ना है, या तो खुद जुड़ जाओ या फिर लोगों को खुद से जोड़ लो। प्रेरणा उत्सव का मूल्य सिद्धांत यही है कि हम लोगों से जुड़ना चाहते हैं।
देर रात तक लोग कविता सेठ से फरमाइशें करते रहे।
आलम यह- देर रात तक फरमाइशें
सूफी गायिका कविता सेठ ने रमेश जी की याद में अंजुम लुधियानवी की गजल, ‘वो मेरे साथ-साथ था जब तक, खुशबुओं का सफर रहा तब तक…’ पढ़ी। लोगों ने भी उनके साथ-साथ गाया। जब उन्होंने फिल्म सीमा का गीत ‘तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम…’ गाया हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
उन्होंने ‘बदल रहा है जो सब शहर में, खुदा वही है, खुदा वही है….’, ‘मैं जिसका जिक्र करती हूं, वो मेरी फिक्र करता है, मेरी सांसों में अपनी रहमतों का नूर भरता है…’,‘गम मुसाफिर था जाने दे, धूप आंगन में आने दे…’ जैसे कई गीत, गजलें गाईं। आलम यह था कि देर रात तक लोग उनसे फरमाइशें करते रहे। बीच-बीच में उनकी शेर-ओ-शायरी माहौल में ताजगी ला देती थी, ऐसा ही एक शेर उन्होंने पढ़ा-
रमेशजी पर किताब का विमोचन अवसर पर किताब ‘द विजनरी लीडरशिप लेसंस फ्रॉम रमेश चंद्र अग्रवाल’ का भी विमोचन किया गया। इसके राइटर प्रोफेसर पीयूष कुमार सिन्हा और रूपल गुप्ता हैं। दोनों मौके पर मौजूद रहे। प्रोफेसर सिन्हा ने कहा कि हमारे लिए किताब में सबसे बढ़ा चैलेंज था इतने अधिक पहलुओं को सामने लाना, लेकिन जब हमने किताब लिखना और रिसर्च करना शुरू की, तो इसमें एक चीज जो महत्वपूर्ण निकाल कर आई, जिसमें यह कहा जा सकता है कि एक अच्छा आंत्रप्रेन्योर या लीडर वह होता है, जो पहले एक अच्छा इंसान होता है। इस किताब को आप एक नॉवेल की तरह नहीं, एक टेक्स्ट बुक की तरह पढ़िए और सीखिए कि कैसे कोई एक आदमी कहां से कहां पहुंचता है।’