उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्‍लेशियर फटने से भारी तबाही मची है. यहां का मलारी ब्रिज भी टूट गया है. जबकि 150 से ज्‍यादा लोग लापता हैं.

उत्‍तराखंड मलारी ब्रिज टूटने से बढ़ी चिंता, इन कारणों से बेहद संवेदनशील इलाका

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उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्‍लेशियर फटने से भारी तबाही मची है. यहां का मलारी ब्रिज भी टूट गया है. जबकि 150 से ज्‍यादा लोग लापता हैं.

उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्‍लेशियर फटने से भारी तबाही मची है. यहां का मलारी ब्रिज भी टूट गया है. जबकि 150 से ज्‍यादा लोग लापता हैं.

उत्‍तराखंड के जिस इलाके में ग्‍लेशियर फटा है वह पूरा इलाका इंडो-तिब्‍बतन बॉर्डर होने की वजह से बेहद संवेदनशील है. जबकि चमोली जिले में बना मलारी ब्रिज इस प्राकृतिक आपदा में टूट गया है. इससे यहां कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं.

 

नई दिल्‍ली. उत्‍तराखंड के चमोली जिले में ग्‍लेशियर फटने से आई बाढ़ ने तबाही मचा दी है. अभी तक इलाके से 15 शव बरामद हो चुके हैं जबकि करीब डेढ़ सौ लोग अभी भी लापता हैं. हालांकि मौत और भय के इस तांडव के अलावा इस घटना ने भारत के लिए एक और बड़ी चिंता खड़ी कर दी है. उत्‍तराखंड के जिस इलाके में यह घटना घटी है वह देश का बेहद ही संवेदनशील इलाका है. इस घटना में मलारी गांव का ब्रिज टूटने से भारत की चिंता दोगुनी हो गई है.

विशेषज्ञों का कहना है कि उत्‍तराखंड का यह इलाका दो मामलों में बेहद संवेदनशील है. पहला प्राकृतिक रूप से दूसरा सेना और बॉर्डर एरिया होने की वजह से. उत्‍तराखंड निवासी वरिष्‍ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल कहते हैं कि चमोली जिले का मलारी गांव इस मामले में बेहद अहम है. मलारी गांव से करीब 60-70 किलोमीटर बाद भारत-तिब्‍बत सीमा लगती है. मलारी नीति वैली में है जो चीनी सीमा से जुड़ी है. वहीं नीति पास दक्षिण तिब्‍बत के साथ व्‍यापार का प्राचीन प्रमुख मार्ग रहा है. चिंता की बात है कि मलारी जाने का प्रमुख ब्रिज इस हादसे में टूट गया है.

उनियाल कहते हैं कि मलारी के आसपास बसे सात-आठ गांव और हैं लेकिन वहां तक जाने के लिए इस ब्रिज का ही इस्तेमाल होता रहा है. यहां तक कि भारत की सेना भी इस ब्रिज का इस्‍तेमाल करती है. ऐसे में इसके टूटने से होने वाली असुविधा सैन्‍य और सामरिक द्रष्टि से भी चिंता पैदा करती है. वे कहते हैं कि पिछले साल कोरोना और उसके बाद चीन के साथ भारत के संबंधों में आई हलचल के बाद सीमा क्षेत्र पर किसी भी तरह की अव्‍यवस्‍था होना ठीक नहीं है. उत्‍तराखंड के और भी इलाके हैं जैसे उत्‍तरकाशी आदि जहां इस तरह की प्राकृतिक आपदा या घटनाएं बहुतायत में होती हैं. लिहाजा इन संवेदनशील इलाकों में बहुत ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत है.वहीं उत्‍तराखंड में ईको टास्क फोर्स के रिटायर्ड कमांडेंट ऑफिसर कर्नल हरिराज सिंह राणा कहते हैं कि इंडो-तिब्‍बतन बॉर्डर की ओर जाने का एक ही रास्‍ता है जो मलारी ब्रिज से होकर जाता है. चमोली में ग्‍लेशियर फटने से यही ब्रिज टूटा है. यह बहुत ही अहम रास्‍ता है. मलारी गांव के बाद पड़ने वाले कागा, द्रोणागिरि, बंपा, कैलाशपुर, गमशाली, लता आदि हैं. इन गांवों में पहले से ही बहुत कम संख्‍या में लोग रहते हैं जबकि ये लोग ही सेना के आंख और कान होते हैं. इन इलाकों से पलायन भी बहुत ज्‍यादा हुआ है. पहले से ही यहां लोगों को बसाए रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन अब इस घटना से ये गांव पूरी तरह कट गए हैं. ऐसे में यह निश्चित ही चिंता की बात है.

राणा कहते हैं कि यह इलाका पर्यटन की द्रष्टि से भी दुरूह इलाकों में ही आता है और कम संख्‍या में लोग यहां पहुंचते हैं लेकिन इंडो-तिब्‍बत बॉर्डर के चलते सेना की अच्‍छी खासी संख्‍या यहां होती है. ऐसे में सेना के आवागमन की द्रष्टि से भी यह ब्रिज तत्‍काल बनाया जाना चाहिए और यहां सुविधाएं शुरू होनी चाहिए.

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