श्योपुर मुरैना संसदीय सीट पर बसपा से प्रतिष्ठित व्यवसाई रमेश अग्रवाल का टिकट होने से इस सीट पर जीत का पेंच बुरी तरह फंसा गया है। चुनाव में जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा इसके कयास अच्छे-अच्छे राजनेतिक विशेषज्ञ नहीं लग पा रहे हैं।
By Suresh Vaishnav
Publish Date: Fri, 26 Apr 2024 01:29 PM (IST)
Updated Date: Fri, 26 Apr 2024 02:11 PM (IST)
Lok sabha chunav 2024: सुरेश वैष्णव- नईदुनिया प्रतिनिधि, श्योपुर। श्योपुर मुरैना संसदीय सीट पर बसपा से प्रतिष्ठित व्यवसाई रमेश अग्रवाल का टिकट होने से इस सीट पर जीत का पेंच बुरी तरह फंसा गया है। चुनाव में जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा इसके कयास अच्छे-अच्छे राजनेतिक विशेषज्ञ नहीं लग पा रहे हैं। इस संसदीय सीट से जीत की गारंटी माने जाने वाले क्षत्रिय मतदाताओं के भाजपा और कांग्रेस में बंटने से दोनों दलों के बीच जहां मामला 50-50 दिखाई दे रहा है वही बसपा द्वारा अग्रवाल समाज से प्रत्याशी बनने से चुनाव त्रिकोणीय होता दिखाई पड़ रहा है।
बता दें कि, सीट पर भाजपा से शिवमंगल सिंह तोमर प्रत्याशी बनाए गए हैं, शिवमंगल सिंह ने पूरे संसदीय क्षेत्र का भ्रमण कर मतदाताओं से वोट तक मांग डालें लेकिन लगभग एक माह तक उनके मुकाबले दूसरा कोई प्रत्याशी सामने नहीं आया तब कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस किसी ब्राह्मण को टिकट देकर यहां जातिगत समीकरण साधने का प्रयास करेगी लेकिन कांग्रेस को डर था कि अगर उसने ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतारा तो बीएसपी भी ब्राह्मण को ही टिकट देकर उसकी हार निश्चित कर देगी। इस डर से कांग्रेस ने बीजेपी की तर्ज पर ही ब्राह्मण प्रत्याशी पर विश्वास करने के बजाय नीटू सिकरवार के रूप में क्षत्रिय प्रत्याशी को ही मैदान में उतार दिया जिससे बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी का सा दिखाई पड़ने लगा है, लेकिन अब बीएसपी ने भी सोशल इंजीनियरिंग करते हुए यहां से अग्रवाल समाज के प्रतिष्ठित व्यवसाई रमेश गर्ग को प्रत्याशी बना कर मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय कर दिया है। ज्ञात हो कि मुरैना श्योपुर संसदीय सीट पर वैश्य मतदाता भी बड़ी संख्या में है जिनकी रमेश गर्ग को वोट करने की संभावना है। अनुसूचित जाति वर्ग जो बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है का साथ मिलाकर बीएसपी इस सीट जीतने की जुगत में लगी है।
मुरैना में प्रत्याशियों की छवि बनी चुनावी मुद्दा
देश-भर में बह रही हवा और चल रहे मुद्दों का असर मुरैना संसदीय क्षेत्र में कम देखने को मिल रहा है। लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं। अयोध्या का राम मंदिर भी चर्चा में है लेकिन प्रत्याशियों की छवि इन पर भारी पड़ती नजर आ रही है। भाजपा के शिवमंगल सिह तोमर की लेकिन उनकी छवि लोगों के बीच ज्यादा अच्छी नहीं है। इसके विपरीत कांग्रेस के सत्यपाल लगभग 45 वर्ष के युवा हैं। उनका व्यवहार ज्यादा अच्छा बताया जा रहा है। इसी वजह से मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर ज्यादा दिख रहा है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं कि यहां अन्य मुद्दों का कोई असर नहीं है। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कराए काम गिना रही है। भाजपा के एजेंडे का हवाला दिया जा रहा है।
विधानसभा चुनाव में 8 में से 5 सीटों पर कांग्रेस हुई विजय
प्रदेश में भाजपा की बंपर जीत के बावजूद मुरैना ऐसा लोकसभा क्षेत्र जहां विधानसभा चुनाव मेंं कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है। कांग्रेस ने विधानसभा की 8 में से 5 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा है। कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटें श्योपुर, विजयपुर, जौरा, मुरैना और अंबाह हैं। भाजपा ने तीन सीटें सबलगढ़, सुमावली और दिमनी जीती हैं। कांग्रेस का पांच सीटों में जीत का अंतर 1 लाख 2 हजार 28 वोट रहा है। जबकि भाजपा तीन सीटें 50 हजार 274 वोटों के अंतर से जीती हैं। इस तरह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग 50 हजार वोटों की बढ़त हासिल है। मुरैना जिले से विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी जीते हैं। वे अच्छे चुनाव प्रबंधक हैं। भाजपा का टिकट भी उनकी सिफारिश पर मिला है। इसलिए लोकसभा के इस चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
भाजपा के लिए इस बार राह कठिन
मुरैना लोकसभा सीट में दो जिलों की 8 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें श्योपुर जिले की दो सीटें विजयपुर और श्योपुर हैं। मुरैना जिले की सभी 6 विधानसभा सीटें सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी और अंबाह भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। श्याेपुर जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। मुरैना जिले की 6 में से 3-3 सीटें भाजपा-कांग्रेस के पास हैं। जहां तक मुरैना लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो सीट पर 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा है। 1991 में कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने अंतिम बार भाजपा के छविलाल अर्गल को 16 हजार 745 वोटों के अंतर से हराकर चुनाव जीता था। इसके बाद 1996 से 2004 तक लगातार मुरैना से भाजपा के अशोक अर्गल सांसद रहे। 2008 के परिसीमन में यह सीट आरक्षण से मुक्त होकर सामान्य हो गई। इसके बाद यहां से दो चुनाव नरेंद्र सिंह तोमर और एक चुनाव अनूप मिश्रा ने जीता। इस लिहाज से मुरैना को भाजपा के प्रभाव वाली सीट कहा जा सकता है, लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा और रोचक दिख रहा है।
जातीय समीकरणों में भी फंसा मुरैना का चुनाव
मुरैना लोकसभा क्षेत्र में हर जाति, समाज के मतदाता हैं लेकिन निर्णायक भूमिका में दलित, तोमर, ब्राह्मण और वैश्य बताए जाते हैं। दलित मतदाताओं की तादाद ज्यादा होने के कारण ही 2008 से पहले तक यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। बाद में मुरैना सामान्य हो गई और इससे लगी भिंड सामान्य से अजा वर्ग के लिए आरक्षित। आमतौर पर तोमर और ब्राह्मण मतदाता एकतरफा पड़ता है। इसी बदौलत यहां से नरेंद्र सिंह तोमर और अनूप मिश्रा सांसद बने। लेकिन इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों ने तोमर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। ऐसे में निर्णायक भूमिका दलित, ब्राह्मण और वैश्य समाज के मतदाताओं की रहने वाली है। कांग्रेस प्रत्याशी मजबूत हैं लेकिन ब्राह्मण को टिकट देकर कांग्रेस और बढ़त ले सकती थी लेकिन संभवत: तोमर वोट बैंक एकमुश्त न जाए इसलिए उसने भी इसी समाज का प्रत्याशी दे दिया। बसपा भी यहां डेढ़ से दो लाख तक वोट ले जाती है। इस बार यहां का चुनाव फंसा है और सबकी इस पर नजर है।