जानकारों के अनुसार यह शिवलिंग हजारों वर्ष पुराना है। मान्यता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इसकी स्थापना की थी। भगवान का मंदिर कदवाल नदी में समा गया और गुप्त रहकर गुप्तेश्वर कहलाया।
By Hemant Kumar Upadhyay
Publish Date: Mon, 22 Jul 2024 11:04:44 AM (IST)
Updated Date: Mon, 22 Jul 2024 11:38:50 AM (IST)
नईदुनिया प्रतिनिधि, श्योपुर। शहर के निकट किले की तलहटी में सीप और कदवाल नदियों के संगम पर बना श्रीगुप्तेश्वर महादेव मंदिर अपनी अद्वितीय प्राचीनता के लिए खास अहमियत रखता है। हालांकि गुप्तेश्वर महादेव का मुख्य मंदिर तो कदवाल नदी के बीच बना है, जो नदी में पानी रहने के दौरान जलमग्न रहता है, लेकिन बाहर किनारे पर बने नए मंदिर में ही लोग पूजा-पाठ करते हैं।
भगवान शिव के इस मंदिर की इस जगह पर उत्पत्ति के पीछे एक कहानी है, जो काफी दिलचस्प है। जिसके अनुसार यह शिवलिंग हजारों साल पुराना है और इसकी स्थापना पांडवों द्वारा अपने अज्ञातवास के दिनों में की गई थी। जब पांडव श्योपुर के जंगलों से घूमते हुए गुजरे थे तो यहां पर पूजा की गई थी।
कहा जाता है कि द्वापर युग के दौरान पांडव जब वनवास पर थे, तब वह श्योपुर के जंगलों में काफी दिनों तक ठहरे थे। इस दौरान यहां कदवाल नदी क्षेत्र में भगवान शिव की स्थापना करने के दौरान इनके द्वारा पूजन-अर्चन किया गया और इसके बाद ही भगवान का यह मंदिर कदवाल नदी में समा गया और गुप्त रहकर गुप्तेश्वर कहलाया।
अब नए शिवालय में होती है पूजा
गुप्तेश्वर मंदिर के सामने ही एक अन्य शिवालय बना हुआ है, जिसमें एक साथ दो शिवलिंग स्थापित है। इन्ही शिवलिंगों की नियमित पूजा-अर्चना होती है, जबकि जलमग्न शिव मंदिर के दर्शन का अवसर गर्मियों में नदी का पानी सूखने के बाद ही मिल पाता है। इस अतिप्राचीन गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के प्रति जिलेवासियों की असीम श्रद्धा है और श्रावण मास के दौरान यहां पर सतत पूजा पाठ के कार्यक्रम चलते रहते हैं।