जंगल में गाय पालने वाले पशुपालक गर्मियों के मौसम में चारे का तो कैसे भी करके इंतजाम कर लेते है, लेकिन नदी-नालों के सूख जाने की वजह से उनके गांवों के ट्यूवबेल और हैंड़पंप भी जबाब दे देते है। जिससे वनांचल के इन गांवों में इंसानों को भी पीने का पानी दूर-दराज के गांवों से ढोकर लाना पड़ता है। जिससे ग्रामीणों को गायों के साथ पलायन करना पड़ता है।
By Neeraj Pandey
Publish Date: Thu, 11 Apr 2024 07:33 PM (IST)
Updated Date: Thu, 11 Apr 2024 07:33 PM (IST)
HighLights
- गर्मी शुरू होते ही पशुपालक गायों को लेकर कर जाते हैं पलायन
- कई गांवों बस्तियां गर्मियों में हो जाती है वीरान
- एक दर्जन से ज्यादा गांवों में मवेशियो के लिए पानी का इंतजाम नहीं
नईदुनिया प्रतिनिधि, श्योपुर। जिले के वनांचल में गर्मी शुरू होते ही पशु पालक डेढ़ लाख से ज्यादा गिर नश्ल की गाय को लेकर दूसरे शहर में पलायन कर जाते हैं। जो बारिश होने के बाद ही वापस लौटते हैं, तब तक बस्तिायां विरान पड़ रहती हैं इस तरह के हालात हर साल गर्मियां शुरू होते ही निर्मित होते हैं, लेकिन जिम्मेदारों के द्वारा इस दिशा में कभी कोई कदम नहीं उठाए जाते है। जिससे बीते सालों की तरह इस साल भी यहां पलायन के हालात बनने लगे हैं।
कराहल के पिपरानी, गोरस, कलमी, डोब, खूटका सहित दर्जन भर से ज्यादा गांव मारवाड़ी समाज के लोग रहते हैं। ये लोग गिर नश्ल की गाय का पालन करते हैं। इनके पास डेढ़ लाख से ज्यादा गाय हैं। बरसात और सर्दी के दिनों में तो पशुपाल गायों के साथ इन गांवों में ही रहते हैं, लेकिन गर्मियां शुरू होते ही यहां के पशुपालक अपनी गायों के साथ गांव खाली कर जाते हैं।
गायों के चारे-पानी का इंतजाम
गायों के चारे-पानी का इंतजाम बारिश और सर्दी के दिनों में तो जंगल में खडी घास व नदी-नालों में भरे हुए पानी से हो जाता है, लेकिन जैसे ही गर्मियों का दौर शुरु होता है वैसे ही जंगल की घास के साथ-साथ नदी-नालों में भरा पानी भी जबाब दे देता है। ऐसे हालातों में इन गायों के भूंख-प्यास से मरने की नौबत आ जाती है। जिसे लेकर पशु पालकों को अपनी गायों को लेकर गर्मी का दौर शुरु होते ही पलायन करना पड़ता है।
शुरू होने लगा पलायन का दौर
गर्मी का दौर शुरु होते पशुपालकों ने गायों के साथ पलायन करना शुरु कर दिया है। इस वजह से बीते एक सप्ताह से वीरपुर क्षेत्र में सड़क से होकर सैकड़ों गिर नश्ल की गायों के झुंड को पशु पालक लेकर जाते देखे गए। बताया जाता है कि श्योपुर जिले के यह पशु पालक अपनी गायों को पैदल-पैदल उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे तक लेकर पहुंचते है।
जहां गर्मियों के दिनों में नदी के तट पर उगने वाली हरी घास खाकर और नदी का पानी पीकर यह गाय गर्मियों में अपना पेट भरती हैं। इसके बाद जैसे ही बारिश का दौर शुरु होता है और यहां के जंगल में हरी घास उगने लग जाती है तो यह पशु पालक फिर गायों को बापस लौटाकर श्योपुर लौट आते हैं। इन पशु पालकों को हर साल सैकडों किलोमीटर पैदल चलकर अपनी गायों के साथ पलायन करना पड़ता है। जिससे उन्हें और उनकी गायों को बेहद परेशानियां भी उठानी पड़ती हैं।
पानी सबसे बड़ी परेशानी
जंगल में गाय पालने वाले पशुपालक गर्मियों के मौसम में चारे का तो कैसे भी करके इंतजाम कर लेते है, लेकिन नदी-नालों के सूख जाने की वजह से उनके गांवों के ट्यूवबेल और हैंड़पंप भी जबाब दे देते है। जिससे वनांचल के इन गांवों में इंसानों को भी पीने का पानी दूर-दराज के गांवों से ढोकर लाना पड़ता है। ऐसे हालातों में गायों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाना नामुमकिन हो जाता है। जिससे ग्रामीणों को गायों के साथ पलायन करना पड़ता है। ग्रामीणों द्वारा लंबे समय से मांग की जा रही है कि उनके गांवों के पास बडे डैम बनाए जाएं जिनमें सालभर पानी रहे।
कराहल क्षेत्र में गर्मियों के दिनों में इंसानों के लिए पानी का इंतजाम मुश्किल हो जाता है। ऐसे में गायों के लिए पानी का इंतजाम हो पाना बेहद मुश्किल भरा रहता है, चारा-पानी के इंतजाम नहीं होने की वजह से हमारे समाज के लोगों को गायों को लेकर हर साल गर्मी शुरु होते ही पलायन करना पड़ता है।
देवाजी गुर्जर, पशुपालक, गोरस
हम मारवाड़ी लोग पशुपालन करके आजीविका चलाते है। क्षेत्र में गर्मी के दिनो में मवेशियों के लिए पानी का कोई इंतजाम नहीं रहता। इसलिए हम गायों को चार महीने के लिए दूसरे राज्य में लेकर जाना पड़ता है।
गाेपाल गुर्जर, पशुपालक, कलमी